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हिन्दी कठिन नहीं है, आप मात्र अपरिचित हैं

हिन्दी कठिन नहीं है, आप मात्र अपरिचित हैं। और हर अपरिचित वस्तु, व्यक्ति, ज्ञान आरम्भ में कठिन ही लगता है।
मुझे इस बात से कोई परेशानी नहीं है कि आप हिन्दी-उर्दू में लिखते हैं या प्रतिदिन बोलचाल में उर्दू शब्दों का अधिक प्रयोग करते हैं।

मुझे परेशानी उनसे है जो यह कहते हैं कि हिन्दी कठिन है, क्लिष्ट है। जब विद्यालय में ‘दिनकर’ या ‘बच्चन’ जी की कविताएँ पढ़ते थे तो उनमें प्रयोग हुए शब्दों के अर्थ भी दिए जाते थे। अङ्ग्रेज़ी की कविताओं में भी इस ही प्रकार शब्दों के अर्थ थे। यही कारण है कि आज हिन्दी, अङ्ग्रेज़ी के शब्द हम जानते हैं, बोलते हैं, लिखते हैं। और इस ही प्रकार से हमारे शब्दकोश का विस्तार होता है ।
यदि हम कठिन जानकर स्वयं को सीमित कर लेंगे तो ठहर जाएँगें, आसान शब्दों का प्रयोग लोगों तक आपके भाव तो पहुँचा देगा लेकिन भाषा ज्ञान रुक जाएगा।

image source: himalayanwritingretreat.com

जब कभी उर्दू, अङ्ग्रेज़ी या हिन्दी का कोई अपरिचित शब्द आपके सामने आए तो उसका अर्थ देखिए। इस प्रकार आपके शब्दकोश में वृद्धि होगी। और जब आप कुछ लिखेंगे तो आपके पास कुछ और शब्द होंगे प्रयोग करने के लिए, इस प्रकार आपके लेखन को नया पन मिलेगा।
जब कोई आपका लिखा पढ़ेगा है तो उसे कोई नया शब्द सीखने मिलेगा और इस ही प्रकार शब्द-ज्ञान का विस्तार होता है।यह एक दृष्टिकोण है।

यदि आप भाषाओं के मूल और उत्कृष्ट शब्दों से प्रेम नहीं करेंगे, उन्हें कठिन की श्रेणी में रखकर मात्र सरलता का हाथ पकड़ेंगे तो धीरे-धीरे भाषा लुप्त हो जाएगी और व्याकरण नष्ट। और इसके बाद भी यदि आप हिन्दी नहीं बोलना चाहते मत बोलिए, नहीं लिखना चाहते न लिखिए, नहीं पढ़ना चाहते मत पढ़िए।
लेकिन “हिन्दी कठिन है” यह बोल बोलकर उनको भ्रमित मत करिए जो इसमें रुचि ले सकते हैं।

सब भाषाओं का ज्ञान उत्तम है, किन्तु अपना मूल भूल जाना मूर्खता!


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