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चरणों की धूल बराबर रुपया

चरणों की धूल बराबर रुपया!

जिस रुपये के लिए लोगों ने अपना मान गिरा दिया, सम्मान गिरा दिया, देश का नाम गिरा दिया वह रुपया इतना नीचे गिर जाएगा कभी सोचा नहीं था. इसीलिए कहते हैं कि कभी इतना नहीं गिरना चाहिए कि दोबारा उठ ही न पाओ। रूपया ऐसा गिर गया है कि रुपये देने पर भी नहीं उठ रहा है. रुपये की नाजुक हालत देख के लगता है अब तो बस उठावनी की ही तैयारी है. रुपये को सँभालने के लिए बंधी अर्थव्यवस्था की रस्सी भी जगह जगह से घिस के टूट रही है. जान पड़ता है डीजल और पेट्रोल के चिढ़ाने से परेशान होकर रूपया भी उनकी बराबरी करने को बेताब है. इतनी दयनीय अवस्था में तो थानेदार के सामने डकैती की रिपोर्ट लिखाने आये सज्जन की नहीं होती जितनी डॉलर के सामने रूप्पइया की हो गयी है. कम से कम वो बपुरा हाथ जोड़ के रिपोर्ट लिखने की मिन्नत करता है यहाँ तो रूपया डॉलर से चरणों में लोट रहा है कि दयानिधान कुछ तो कृपा करो. डॉलर तो रूपया को अपने चरण की धूल बराबर भी न समझते हुए लतिया के चल देता है. ऐसी बेज्ज़ती तो सरकार ने लॉकडाउन में मजदूरों की नहीं की जितनी अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में रुपये की हो रही है. अपनी इस हालत के जिम्मेदारों के खिलाफ बोलने पर एंटी नेशनल कहे जाने के डर से बेचारा रूपया चुप हो गया है, बस इतना ही कहे जा रहा है कि सरकार कर रहे हैं तो कुछ सोच कर ही कह रहे होंगे.

रुपये को गिरते देख नेता भी शर्मा रहे हैं, इतना नीचे तो देश की सरकारें नहीं गिरी जितना ये रूपया गिर गया है. नेताओं का चरित्र भी इतना तेजी से नहीं गिरता जैसे रुपया गिर रहा है. रुपया अगर पत्रकार, लेखक या स्टैंडअप कॉमेडियन होता तो सरकार फ़ौरन उठवा लेती लेकिन रुपये को उठाने का तंत्र सरकार के पास नहीं है. हालाँकि रुपये को उठाने के लिए सरकार ने बुलडोजर भेजे थे लेकिन आदत से मजबूर बुलडोजर उठाने की जगह तोड़ कर आ गया. वैसे विधायकों को उठाने से फुर्सत मिले तो सरकार रुपये को भी उठाने का प्रयास जरूर करेगी. वैसे भी गिरे हुए को उठाने का काम भगवान का है सरकार का नहीं. जनता, छात्रों और किसानों के धरने को रिकॉर्ड समय में उठाने वाली सरकार रुपये को उठाने में बैठी जा रही है. इस बैठ जाने को जल्द ही मास्टर स्ट्रोक कहने के लिए न्यूज़ चैनलों में टीवी प्रवक्ता उमड़ पड़ेंगे।

आज देश में किसान के बाद सबसे कमजोर रूपया ही है. देश चलता किसान और रुपये से ही है लेकिन उसकी स्थिति सुधारने की चिंता किसी को नहीं है। किसान और रूपया में प्रतियोगिता चल रही है कि ज्यादा कमजोर कौन हो गया है. किसान की हड्डियां ज्यादा स्पष्ट दिख रही हैं या रुपये की. नेता जी का कहना है किसान और रुपये दोनों फिट इंडिया मूवमेंट के अगुआ हैं, विपक्ष इन्हें कमजोर बता के बरगला रहा है. वो दरअसल हड्डियां नहीं 6 पैक्स हैं. किसान और रुपये दोनों साथ में चिल्ला के बताना चाहते हैं कि सरकार ये हड्डियां है लेकिन कमज़ोरी के कारण चिल्ला नहीं पाते। सरकार किसान और रुपये की हालत जानते हुए भी किसानों को कुछ रुपये देने और रुपये में कुछ किसानों को बना के सम्मान देने की योजना पर विचार करने लगती है। सम्मान गिरे हुए को उठाने का एकमात्र तरीका है।



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