पिछले कुछ वर्षो में उर्दू शायरी के हवाले से जो नए लोग सामने आए है, उनमें कुछ लोग ही ऐसे हैं जिनके पास शेर कहने की ख़ास सलाहियत है। उनमे से एक उभरता नाम है आनंद सिंह। आनंद सिंह का ताल्लुक़ उत्तरप्रदेश के शहर प्रतापगढ़ से है। पेशे से वह एक इंजीनियर है और फिलहाल पुणे में एक आईटी कंपनी में कार्यरत है। पुणे में आप “अभिव्यंजना” नाम का एक साहित्य संस्था चलाते है जो की हिंदी साहित्य को बढ़ावा देने के उद्द्येश्य से काम कर रही है।
आनंद सिंह की शायरी में ज़िंदगी के नए पहलुओं और ज़ावियों की तरफ़ इशारा मिलता है। अशआर में अनोखे विषयों को कलमबंद करने और नई बात कहने के हुनर से वो बख़ूबी वाक़िफ़ हैं।
आइये देखते है आनंद सिंह के कुछ चुनिंदा स्वरचित रचनाये/ग़ज़लें…
1. मेरी ख़ामोशी से हर बार आती है सदा कोई…
मेरी ख़ामोशी से हर बार आती है सदा कोई यही हासिल है मेरा की न उनको सुन सका कोई टटोला नब्ज़ तो बोले यही नासेह चारागर यूँ मरने दो, न दो इसको दवा कोई, दुआ कोई किसी वीरान मौसम में, शज़र शादाब जैसा मैं मुझे इक लम्हे में इतनी मुहब्बत कर गया कोई हवा तो फिर हवा ही है, अजब शम्माओं की फितरत हवा से बुझ गया कोई, हवा से जल गया कोई तग़ाफ़ुल ही मिरी जाना , दिले नादां पे भारी है तो क्या होगा अगर तुमको, कहेगा बेवफ़ा कोई यही नाकिद भी कहता है, कि अब आनन्द से बेहतर ग़ज़ल ना पी सका कोई, ग़ज़ल ना जी सका कोई
2. डरा डरा के हमें बे ज़ुबान रक्खेंगे…
डरा डरा के हमें बे ज़ुबान रक्खेंगे, तो आप ऐसे रिआया का ध्यान रक्खेंगे, खुदी से जंग है मैदान ए जंग में अपना, कि पार्थ अब नहीं तीर ओ कमान रक्खेंगे, हमारे अपनो ने कांटे बिछाए राहों में, बड़े खुलूस से हम इसका मान रक्खेंगे मुझे भी इल्म हो कितने तेरे फ़कीर हुए, तेरी गली में गुलों की दुकान रक्खेंगे हमारे सामने जो चाहे शर्त रख दे वो, हम उसक सामने सिंदूरदान रक्खेंगे इसीलिए इसे सर पे उठा लिया मैने, भला ज़मीं पे कहाँ आसमान रक्खेंगे
3. हमारे दिल की ये आरज़ू है, हमारी खुशबू छुआ करो तुम…
हमारे दिल की ये आरज़ू है, हमारी खुशबू छुआ करो तुम तुम्हें मुहब्बत का वास्ता है , ना ऐसे तर्क ए वफ़ा करो तुम कहे पतंगे , हमारी उल्फ़त , तुम्हारे जलने से जल ना जाए, गले लगाके अरी शमाओं , यूँ रात भर ना जला करो तुम, हमारा घर तो है एक गुलशन, यहाँ है शामिल सभी की खुशबू ये शर्त तुमसे चलो लगाया ,कि खुशबुओं को जुदा करो तुम कि दिल दरीचा भी खोल ले तो , तुम्हारी यादें न आ सकेंगी तुम्हारा ताल्लुक है जिस किसी से,उसी से थोड़ी वफ़ा करो तुम
4. उसका सोलह सिंगार ले डूबा…
उसका सोलह सिंगार ले डूबा लो, मुझे हुस्न-ए-यार ! ले डूबा दुश्मनों से न कुछ हुआ लेकिन मुझको मेरा ही यार ले डूबा एक पौधे को उसके माली का हद से ज़्यादा दुलार ले डूबा ज़ह्र भी वो न खा सका आख़िर उसको उसका उधार ले डूबा वो जो नफ़रत भी कर नहीं पाया मुझको उसका ही प्यार ले डूबा
5. दिल को इस बात से इंकार नहीं हो सकता…
दिल को इस बात से इंकार नहीं हो सकता अब इसे फिर से कभी प्यार नहीं हो सकता जिंदगी है ये कोई जॉब नहीं हैं साहब मौत हो सकती है इतवार नहीं हो सकता इतने अरमान अधूरे हैं , कमी है इतनी अब तो मर के भी मैं उस पार नहीं हो सकता सर मेरा धड़ से अलग होने को हो सकता है पर अलग सर से ये दस्तार नहीं हो सकता हर दफे झुक के मैं रिश्तों को बचा लेता हूं वो जो हस्सास है खुद्दार नहीं हो सकता यार-ए-दीदार-ए-तमन्ना में गई बीनाई यार क्या अब तिरा दीदार नहीं हो सकता?
6. मुझमें हिम्मत भी नहीं गुल से ये दिल जोड़ लूं मैं…
मुझमें हिम्मत भी नहीं गुल से ये दिल जोड़ लूं मैं ऐसी वहशत भी नहीं है कि इसे तोड़ लूं मैं कोई पैगाम नहीं कोई इशारा भी नहीं कब तलक यूं ही रकीबों से कोई होड़ लूं मैं इतनी तन्हाई कि मैं ख़ुद भी नहीं ख़ुद के साथ ऐसी वहशत है कि दीवार पे सर फोड़ लूँ मैं मैं भी ठहरा हूं मनाजिर भी सभी ठहरे हैं बच निकलना है तो ख़ुद को ज़रा झंझोड़ लूं मैं ऐब हैं मुझमें कई पर ये कभी होगा नहीं ऐन मौके पे कही बात से मुंह मोड़ लूं मैं
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