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Ashish Shukla

चरणों की धूल बराबर रुपया

चरणों की धूल बराबर रुपया!

जिस रुपये के लिए लोगों ने अपना मान गिरा दिया, सम्मान गिरा दिया, देश का नाम गिरा दिया वह रुपया इतना नीचे गिर जाएगा कभी सोचा नहीं था. इसीलिए कहते हैं कि कभी इतना नहीं गिरना चाहिए कि दोबारा उठ ही न पाओ। रूपया ऐसा गिर गया है कि रुपये देने पर भी नहीं उठ […]

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Ashish Shukla Sajal

मेरी किताबें घूमती हैं…

गुलज़ार साहब की किताबें झांकती हैं, रविश कुमार की करवटें बदलती हैं और मेरी किताबें घूमती हैं। जी हां, मेरी किताबें घूमती हैं। मेरे साथ। मेरे घर में, यहां-वहां ,जहां-तहां। कभी कमरें के इस कोनें से उस कोनें में, तो कभी बिस्तर के चारों ओर। मेरे साथ, मेरे बैग में भी काफ़ी दिनों तक घूमती

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